Friday, June 17, 2011

CokeStudio@MTV

Like everyone else even I was waiting for CokeStudio India. Must admit that it has got nothing to do with my love of Music, Coke or MTV. Like most other things in life, it was all about herd instinct.

For about a month or so, my timeline is abuzz with mentions of CokeStudio Pakistan. Frankly speaking, as far as music is concerned, even I am a big fan of Pakistan. You got it wrong, it's less to do with Ustad Rahat Fateh Ali Khan but more to do with www.songXX.Pk ( name withheld on request), my one stop shop for music.

Some say it’s a real game changer for MTV, it'll put Music back to MTV blah blah. But, I am sure that after producing trendsetting and inspiring shows like Roadies & SplitsVilla,  MTV doesn’t give a damn to M.

Finally the day arrived, had earmarked this day in my calendar. I didn’t even accept any meeting after 5 today so that I can reach home before 7. It took me almost 45 seconds to find MTV Channel on my TV, last I remember switching on MTV when Cyrus Broacha was young and Cyrus Sahukar wasn’t even born. Atlast, I was watching Shaan on the CokeStudio and was glad that like everything else we’ll bollywoodise this also. 

But, all that begun well didn’t end well for me, this is not what an Indian expects from a music programme.

Where the hell were judges in this – Talented Himesh, Anu Malik, Farah Khan, not even Archana Pooran Singh. Now how would I know whether Chinna Ponnu’s scale was correct or not. I still miss Himesh, his cap and his crap ( sorry,  I mean Jai Mata Di, let’s rock). Now in absence of an eminent judge like Farah Khan, who would tell Harshdeep that she lacks that X factor and good singing is not everything.

Scoring – Now this is really lame, how can you guys watch a musical without scoring? Imagine talented Archana Pooran Singh scoring participants at the CokeStudio  and giving 7/10 to Kailash Kher and 9/10 to Khagen Gogoi. For an average audience scores of experts like Sanjay Leela Bhansali and Archana are must to judge and compare the finesse of these performers.

Drama – Simple plain signing , written introduction and then singing again – What the hell is this. Why these guys didn’t show Sabri Brothers' rags to riches story, why cameramen didn’t visit their village to show their old parents, neighbours and even family cow. How about showing Priyanka Chopra and Uday Chopra introducing Shaan ? Why Tochi’s family was not in the audience with camera focusing on them every time he picks a high scale note.

Seems there’s no MBA in CokeStudio team, how can you have a reality music show with no movie stars coming and promoting their movie. SRK could have come to promote RaOne.  Tushaar, Arshad, Sharman should have been called to promote Golmaal-9, they would also have judged the show. Talented Tushaar Kapoor would have given a tip or two to Sabri Bros.

Last and the most important , NO VOTE APEEAL – now this is ridiculous. Harshdeep should have appealed for vote , especially from Punjab. Being a Punjabi, I was ready with my mobile and would have spent  Rs. 7 to “save her”.  This is really bad for the economy as well.

Let’s watch the next episode coming Friday, if they don’t correct themselves even then , one of you should fast in front of CokeStudio .

मीठे में क्या है?

Well, as promised, We are back. This is part 2 of my collaboration with the world famous Shiv Mishra , who blogs in Hindi at http://www.shiv-gyan.blogspot.com/ .

रोज की तरह आज भी शर्मा जी ने टाइम पर डिब्बे में रखे लंच का संहार किया. अचार के मसाले को चाटते हुए उनके चेहरे पर एक मुस्कान थी. लंच के बाद जब वे हाथ धो रहे थे, उस समय भी एक बार फिर से उनके चेहरे पर उसी मुस्कान का एक्शन रिप्ले हुआ जो उनके अचार का मसाला चाटते हुए आई थी. आइये जानने की कोशिश करते हैं कि शर्मा जी के मुखड़े पर इस मुस्कान के आने का कारण क्या है? उनसे पूछें? जाने दीजिये. मूड तो उनका ठीक है लेकिन मैनेजर ही तो हैं. पता नहीं कब बिदक जायें? वैसे भी आज सुबह से अभी तक किसी बात पर वे बिदके नहीं हैं. ऐसे में क्या पता कि हमारे सवाल पर ही बिदक जायें? 


आफिस में रहते हुए मैनेजर अगर फ्रीक्वेन्टली नाराज़ न हो तो उसे मैनेजर माननेवालों की संख्या दिनों- दिन कम होती जाती है.

तब कैसे पता चलेगा? चलिए शर्मा जी के मन की बात पढ़ने की कोशिश करते हैं. क्या कहा? यह संभव नहीं? लगता है आपने श्री गोविंदा की महान फिल्म दूल्हे राजा नहीं देखी है इसीलिए ऐसा कह रहे हैं. आपने देखा नहीं कि उस फिल्म में गोविंदा जी किस तरह से किसी के मन की बात सुन लेते.....क्या कहा? समझ में आ गया? ये अच्छा हुआ नहीं तो मैं उस फिल्म के डायलॉग लिखकर आपको बताने की कोशिश करता जिससे आप बोर होते. समझदार पाठक की यही निशानी है कि वह बोरे होने से बचता रहे.

तो चलिए शर्मा जी के मन की बात सुनते हैं....मैंने पता लगा लिया. अब पढ़िए कि शर्मा जी क्यों मुस्कुराए.

आज उन्होंने अपने एक क्लायंट के साथ तीन बजे मीटिंग फिक्स कर ली है. काबिल मैनेजर की यही निशानी है कि वह अपने आफिस से दूर किसी क्लायंट से तीन बजे मीटिंग फिक्स कर ले जिससे मीटिंग ख़त्म होते-होते साढ़े चार बज जाए. जिससे वह वहाँ से निकल कर अपने आफिस फ़ोन करके यह बता सके कि अब आफिस पहुँचते-पहुँचते साढ़े पाँच बज जायेंगे इसलिए वह यहीं से घर चले जा रहे हैं. वैसे भी आफिस में कोई और मीटिंग तो है नहीं. आज मंगलवार है और मिड ऑफ द वीक मीटिंग वृहस्पतिवार को होती है. उस दिन तो छ से नौ बजे तक झक मारकर आफिस में बैठना ही पड़ता है. ऐसे में क्यों न वे आज घर जल्दी पहुंचकर मिसेज शर्मा को सरप्राइज दें?

श्रीमती जी सरप्राइज देने वाली बात उनके मन में आई ज़रूर है लेकिन उसको लेकर वे बहुत कन्विंश नहीं हैं. कारण यह है कि उन्होंने जब भी अपनी श्रीमती जी को सरप्राइज देने की कोशिश की है उनका सरप्राइज औंधे मुँह गिरा है. पहली बार कोशिश उन्होंने तब की थी जब मिसेज शर्मा के जन्मदिन पर उन्होंने एक फेमस ब्रांड की ईयर-रिंग्स खरीद कर उन्हें गिफ्ट की थी. उन ईयर-रिंग्स को देखकर मिसेज शर्मा का पहला रिएक्शन था; "क्या जरूरत थी इतना पैसा खर्च करने की?" दूसरा रिएक्शन था "इसकी डिजाइन कित्ती तो ओल्ड है."

श्रीमती जी के रियेक्शंस सुनकर शर्मा जी को एक क्षण के लिए लगा कि उनके फ्लैट की फर्श फट जाए जिससे वे उसमें समा जायें. यह बात अलग थी कि ऐसा हो न सका. बिल्डर ने फ्लैट की फर्श उतनी भी कमजोर नहीं बनाई थी कि घर की मालकिन को ईयर-रिंग्स पसंद न आने पर फट जाती. अपनी शर्म को समेटे शर्मा जी को मन मार कर चुप रह जाना पड़ा था. दूसरी बार उनका सरप्राइज तब औंधे मुँह गिरा था जब काम करने वाली मेड के दो दिनों तक न आने की वजह से उन्होंने श्रीमती जी की मदद करने के लिए तब बर्तन धो देने की कोशिश की थी जब वे नीचे सब्जी वाले से सब्जी खरीदने गयीं थीं. वापस आकर जब उन्होंने देखा कि शर्मा जी ने सारे बर्तन धो डाले थे तो उन्होंने यह कहते हुए अपनी नाराजगी दिखाई कि; "जब तुम्हें मालूम नहीं है कि बर्तन धोकर रखना कैसे है तो क्या जरूरत थी उसे धोने की?"

उस दिन फर्श में समा जाने की बात उनके मन में नहीं आई क्योंकि उन्हें यह बता पता थी कि फर्श के फटने का कोई चांस नहीं था. हाँ, यह बात मन में जरूर आई कि कौन सा बहाना बनाकर वे घर से तीन-चार घंटे के लिए निकल जायें? चूंकि उन्हें तुरंत कोई बहाना नहीं सूझा था इसलिए घर में ही रहकर आधे घंटे तक वे मिसेज शर्मा की बातें सुनते रहे. कुछ देर बाद टीवी पर चल रहे एक सिंगिंग रियलिटी शो ने उन्हें उबारा. तीसरी बार उनका सरप्राइज तब...खैर जाने दीजिये. पुरानी बातों के बारे में बात करके क्या फायदा?

वहीँ दूसरी तरफ मिसेज शर्मा ने जब भी चाहा 'आर्यपुत्र' को सरप्राइज देने में हमेशा कामयाब रहीं. पहली बार उन्होंने तब सरप्राइज दी जब पड़ोस की अपनी फ्रेंड मिसेज सुरी के रस्ते पर चलते हुए एक बदनाम फिनांस कंपनी में डिपोजिट अकाउंट इसलिए खोला क्योंकि उसके एजेंट के अनुसार पाँच साल तक पैसा जमा करने से उन्हें कंपनी के हाउसिंग प्रोजेक्ट में फ्लैट मिलना था. दूसरी बार मिसेज शर्मा ने तब सरप्राइज दिया...खैर जाने दीजिये. जब शर्मा जी के सरप्राइज की बात और नहीं हुई तो बराबरी का तकाजा है कि मिसेज शर्मा के सरप्राइज की बात को भी आगे न बढ़ाया जाय.

अपनी सरप्राइज देने की कोशिशों के हर बार धरासायी होने के बावजूद आज एक बार फिर से शर्मा जी के मन में आया कि सरप्राइज पर एक बार फिर से हाथ आजमाया जाय. कोशिश करने में हर्ज़ ही क्या है? उन्होंने आठवीं कक्षा में बच्चन जी की कविता बड़े मन से पढ़ी थी जिसमें बताया गया था कि; "कोशिश करने वालों की हार नहीं होती.." बच्चन जी की फिलासफी से प्रभावित शर्मा जी ने आज मन में एक बार फिर से ठान ही लिया कि वे बहुत दिनों बाद श्रीमती जी को सरप्राइज करेंगे.

मीटिंग ख़त्म करके वे घर की तरफ रवाना हो लिए.

कार की पिछली सीट पर बैठे वे घर की तरफ चले जा रहे हैं. अगर आप वैज्ञानिक बुद्धि की अधिकता वाले पाठक हैं तो यह भी कह सकते हैं कि शर्मा जी घर की तरफ कहाँ जा रहे हैं? घर की तरफ तो उनकी कार जा रही है और यह संयोग की बात है कि चूंकि वे भी उसी कार में बैठे हैं इसलिए वे भी घर की तरफ जा पा रहे हैं. खैर जो भी हो, घर की तरफ चले जा रहे शर्मा जी ने अपनी घड़ी पर एक निगाह डाली. मन ही मन सोचा; 'वाह,! आज बहुत दिनों बाद सवा पाँच बजे तक घर पहुंचकर मिसेज को सरप्राइज दूंगा.'

आस-पास से जाने वाली कारों में बैठे लोगों को देखकर वे मन ही मन यह अनुमान भी लगाते जा रहे थे कि इनमें से कितने लोग़ इतनी जल्दी अपने घर जा रहे होंगे? दूसरे ही पल सोचते; 'इनलोगों को देखकर तो नहीं लगता कि ये लोग़ अपने घर जा रहे हैं. देखकर तो यही लगता है कि क्लायंट के साथ मीटिंग करके अपने आफिस वापस जा रहे हैं.'

उनके मन में कई बार आया कि किसी सिग्नल पर वे कार का विंडो ग्लास नीचे खिसका कर बगल वाली कार में बैठे साहब से पूछ लें कि; "आप क्लायंट के साथ मीटिंग ख़त्म करके अपने आफिस वापस क्यों जा रहे हैं? वहीँ से घर क्यों नहीं चले गए? मुझे देखिये...." उनके मन में यह भी आया कि एक बार विंडो ग्लास नीचे खिसका कर वे चिल्लाकर लोगों को बताएं कि वे आज बहुत जल्दी अपने घर जा रहे हैं. यह भी कि जल्दी घर पहुंचकर अपनी श्रीमती जी को सरप्राइज देना चाहते हैं. यह भी कि जीवन की इस आपा-धापी में बीच-बीच में ऐसा करने से एक मैनेजर की घर के प्रति जिम्मेदारियां निभ जाती हैं.

ऐसा करने के बाद कोई उसके ऊपर आरोप नहीं लगा सकता कि वो केवल आफिस में अपने काम में बिजी रहता है और घर की तरफ ध्यान नहीं देता.

न्यूटन जी का रहस्योद्घाटन कि; "कोई वस्तु गतिशील अवस्था में तबतक रहती है जबतक उसपर बाहरी बल न लगाया जाय", आज एक बार फिर से तब सच्चा साबित हुआ जब शर्मा जी के ड्राइवर ने बिल्डिंग के नीचे पहुँच चुकी उनकी कार पर ब्रेक लगा दिया. थोड़ी ही देर में शर्मा जी अपने फ्लैट के सामने थे. उन्होंने "आज मौसम है बड़ा, बेईमान है बड़ा.." गुनगुनाते हुए डोरबेल बजाई. करीब तीन मिनट तक दरवाजा नहीं खुला. उन्होंने एक बार फिर से मौसम के बेईमान होने की बात गाने में बताते हुए डोरबेल बजाई. इसबार दरवाजा खुला. सामने मिसेज शर्मा खड़ी थीं.

उन्होंने बायें हाथ से दरवाजा खोला. अपने दायें हाथ की उँगलियों को इस तरह से आड़ी-तिरछी कर रखी थीं जैसे परदे पर शैडो बनानेवाला कोई कलाकार तोता बनाने की कोशिश करता हुआ बरामद हुआ हो. उँगलियों को आड़ी-तिरछी रखकर तोता बनाने के पीछे कारण यह था कि जब अचानक डोरबेल बजी तो वे किचेन में बर्तन धो रही थी. ऐसे में पानी में भीगी उँगलियों और हथेली का तोते में कन्वर्ट हो जाना एक स्वाभाविक बात थी.

दरवाजा खोलने के बाद अपनी उँगलियों से बनाये गए तोते को बड़े प्यार से संभालते हुए वे वापस किचेन में चली गईं. शर्मा जी के चेहरे पर गर्व के वही भाव थे जो जल्दी घर आकर सरप्राइज देने वाले हसबैंड के चहरे पर होते हैं. सोफे पर बैठते हुए उन्होंने मिसेज से कहा; "डार्लिंग, एक कप चाय हो जाए."

इतना कहने के बाद वे एक बार फिर से बेईमान मौसम की बात वाले गीत के बहाने मोहम्मद रफ़ी की मिमिक्री करने की कोशिश करने लगे. पाँच मिनट बाद मिसेज ने टेबिल पर लाकर चाय से भरा कप लगभग पटकते हुए रख दिया. एक कप चाय देखकर शर्मा जी बोले; "अरे, अपने लिए नहीं बनाया? एक ही कप चाय ले आई?"

उनकी बात सुनकर मिसेज शर्मा बोलीं; "तुम्ही ने तो कहा कि एक कप चाय हो जाए. तो एक कप ले आई."

मिसेज की बात के सहारे उनका तेवर पढ़ते हुए उन्हें अपना सरप्राइज आज एकबार फिर से धरासायी होता हुआ दिखाई दिया. स्थिति को भांपकर उसे सँभालने की कोशिश करते हुए बोले; "हे हे, तुम भी न. अच्छा कोई बात नहीं. चलो आज कटिंग चाय पी लेंगे."

उनकी बात सुनकर मिसेज शर्मा ने कप उठाकर एक घूँट चाय पी और कप को प्लेट में वैसे ही पटका जैसे एल बी डब्लू के गलत डिसीजन का शिकार बैट्समैन अपना बैट पटकता है. यह करने के बाद वे फिर से रसोई घर में चली गईं.

अपनी सरप्राइज को जिन्दा रखने की कवायद करते हुए शर्मा जी ने उसे फिर से बातों की संजीवनी बूटी पिलाने की कोशिश की. बोले; "चलो, आज जल्दी आ गया हूँ तो बाहर चलकर डिनर करते हैं. आज चायनीज खाते हैं."

उनकी बात सुनकर मिसेज ने रसोई से ही आवाज़ लगाई; "कोई जरूरत नहीं है. वैसे भी खाना बन गया है."

शर्मा जी ने परिस्थिति को फिर से सँभालने की कोशिश करते हुए कहा; "कोई बात नहीं. डिनर में तो अभी देर है. चलो जुहू चौपाटी चलते हैं. वहाँ थोड़ा घूम लेंगे. पानीपूरी खाए बहुत दिन हो गया, आज पानीपूरी खाकर आते हैं. वैसे एक काम और कर सकते हैं. वो पृथ्वी थियेटर में कई महीनों से एक बड़ा हिट प्ले चल रहा है,रावणलीला. सुना है बहुत कॉमेडी प्ले है. उसको देख आते हैं."

उनकी बात सुनकर मिसेज शर्मा और भड़क गईं. बोलीं; "और ये काम कौन करेगा? किचेन में इतना बर्तन पड़ा है उसको कौन धोएगा? हुंह, और रावणलीला देखने के लिए थियेटर क्यों जाना? रावणलीला तो में घर में ही देख रही हूँ. वो कम है क्या?"

उनकी बात सुनकर शर्मा जी किचेन में गए. किचेन का स्लैब बर्तनों से भरा था. अब उन्हें अपने सरप्राइज के चित हो जाने की चिंता नहीं थी. उन्हें पता चल चुका था कि उन्होंने जितना समझा था, मामला उससे ज्यादा सीरियस है. बोले; "तुम बर्तन धो रही हो? सक्कुबाई नहीं आई क्या आज?"

उनके सवाल के जवाब में मिसेज शर्मा बोलीं; "वो क्या आएगी? मैं उसे आने दूँ तब न. उसका बस चले तो मुझे ही घर से निकाल कर इस घर पर कब्ज़ा कर ले. मैंने उसको निकाल दिया. हुंह, बड़े आये रावणलीला दिखाने वाले."

मिसेज शर्मा अब आपे से बाहर थीं. बायें हाथ से बालों को ठीक करते हुए बोलीं; "मैंने उसको ऐसे ही नहीं निकाला."

"लेकिन क्यों? वह तो अच्छा ही काम करती थी. खुद तुमने कई बार उसकी तारीफ़ की है"; शर्मा जी को अभी भी समझ में नहीं आ रहा था कि श्रीमती जी ने सक्कुबाई को निकाला क्यों?

"हाँ, तुम तो बोलोगे ही कि अच्छा काम करती थी. मैं क्या समझती नहीं हूँ? सब एक जैसे हैं. जगह कोई भी हो, सारे मर्द एक जैसे हैं. जैसा वो शाइनी आहूजा और खान, वैसे ही तुम"; मिसेज शर्मा ने अपनी बात रखकर धर दिया.

उनकी बात सुनकर शर्मा जी को हँसी आ गई. बोले; "कोई खान भी मेड के चक्कर में फंस गया क्या? कौन वाला फंसा?"

"हंसो मत. जैसे तुम्हें मालूम ही नहीं कि मैं वो अमेरिका वाले खान की बात कर रही हूँ. वो जो होटल में मेड के साथ...."

श्रीमती जी की बात सुनकर शर्मा जी की हँसी दिन दूनी रात चौगुनी स्टाइल में बढ़ गई. बोले; "अरे वो खान नहीं है. उसका नाम कान है. डोमिनिक स्ट्रॉस कान. और डार्लिंग, तुम मेरे ऊपर इतना बड़ा एलीगेशन लगा रही हो? मैंने तो आजतक सक्कुबाई से ढंग से बात भी नहीं की. मैंने ऐसा क्या कर दिया जो तुम मुझे शाइनी..... "

"अच्छा, तुम्हें क्या लगता है, मुझे कुछ मालूम नहीं है? वो सक्कुबाई ने मुझे सबकुछ बता दिया है"; मिसेज ने अब जोर-जोर से बोलना शुरू कर दिया था.

"अरे क्या बता दिया है?"; अब शर्मा जी को मामला और पेंचीदा लग रहा था.

"वही जो वो लड़का उस चॉकलेट के ऐड में अपनी वाइफ से रोज-रोज कहता है. आज मीठे में क्या है? आज मीठे में क्या है? उसने खुद बताया कि न जाने कितनी बार डिनर ख़त्म होने के बाद तुमने सक्कुबाई से पूछा कि मीठे में क्या है? अब कह दो कि तुमने ये नहीं पूछा?"; मिसेज शर्मा की आवाज़ तेज होती जा रही थी.

वे बोलती जा रही थीं और शर्मा जी को लग रहा था कि मिसेज शर्मा का हर शब्द शर्मा जी के सरप्राइज के गुब्बारे में पिन बनकर चुभता जा रहा है. गुब्बारे की हवा निकलती जा रही थी.

आप वह विज्ञापन भी देख लीजिये.


Wednesday, June 15, 2011

शर्मा जी का डिब्बा


Surprised, don't be. It's not me-It's us. Well, I met this ( yet to meet personally ) this awesome gentleman, Hindi blogger par excellence and soon to be a published author Shiv Mishra on twitter , and this is our joint effort. He blogs in Hindi here http://www.shiv-gyan.blogspot.com/ .

This is first of our 2 part post. Read on.

एक वीक-डेज वाली दोपहर. आफिस के दो बज रहे थे. आप कह सकते हैं; "किसी आफिस का बारह बजते सुना है लेकिन दो बजते हुए तो नहीं सुना." 

तो मेरा कहना यह है कि; - अब देखिये सुना तो मैंने भी नहीं. हाँ, देखा ज़रूर है. कि दो बजे का समय बहुत महत्वपूर्ण होता है. कि दो बजते ही तमाम लोग़ कसमसाने लगते हैं. कि दो बजते ही एक-दूसरे को अपनी भूख का हिसाब देते हैं जिसका मतलब यह होता है कि बड़े जोरों की भूख लगी है. कि दो बजते ही आफिस के प्यून मन ही मन बुदबुदाने लगते हैं कि साहेब लोग़ अब बुलाएँगे. किचेन से प्लेट और चम्मच लाने को कहेंगे. कि फ्रिज से ठंडा पानी लाने के लिए कहेंगे. कि चार रोटी और सब्जी क्या खायेंगे पूरे घंटे भर सतायेंगे. 


उधर प्लेट और चम्मच के जोड़े भी धुल जाने के बाद सुबह से ही सोचने लगते हैं कि पता नहीं आज किसके हत्थे चढ़ेंगे? दोनों की ज्वाइंट आकांक्षा यह रहती है कि "कितना अच्छा हो अगर आज हमदोनों मिस्टर मेहता के हाथ लगें. वे हमें कितने प्यार से पकड़ते हैं. सब्जी खाने के बाद चम्मच को ऐसे देखते हैं जैसे उससे सहानुभूति दिखाते हुए पूछ रहे हों कि दो सेकंड के लिए तुम सब्जी लादे हुए मेरे मुँह में गए थे, तुम्हें तकलीफ तो नहीं हुई? हे भगवान, आज हमें गौतम साहेब के हत्थे मत चढ़ाना. लंच के समय जब भी हमदोनों उनके हाथ में पहुँचते हैं, वे खाने से पहले कम से कम पाँच मिनट तक हमदोनों को साथ बजाते हुए "कजरारे कजरारे" गाते हैं." 


कई बार तो चम्मच के मन में यह भी आया कि वह किसी बहाने गौतम जी का हाथ छुड़ाकर उछले और सीधा उनकी नाक पर एक किक जमा दे. लेकिन बेचारा उनकी मैनेजरी का लिहाज करता हुआ चुप ही रहता है.


उधर टिफिन में ठूंसकर भरी गई रोटियां पिछले चार घंटों से टिफिन से निकलने के लिए ठीक वैसे ही तड़प रही होती हैं जैसे तिहाड़ से निकलने के लिए कनिमोई. नौ बजे मिसेज शर्मा ने उन्हें सूखे आलू की सब्जी के साथ पतली वाली टिफिन में ठूंसा नहीं कि रोटियां कसमसाने हुए अपनी किस्मत को रोने लगती हैं कि अब न चाहते हुए भी चार घंटे इस आलू की सब्जी के साथ रहना पड़ेगा. दो बजे से पहले इससे डायवोर्स के चांस नहीं हैं. सूखे आलू की सब्जी उधर अपने साथ चेंप दिए गए एक फांक आम के अचार से पीड़ित है. आम का अचार आलू की सब्जी की आँख में घुसकर उसे पूरे साढ़े पाँच घंटे रुलाता है. आम के कई फांक तो अपने साथ इतना मसाला लिए हुए चलते हैं जितना उस आलू की सब्जी की आँख में घुसकर उसे तीन दिनों तक रुलाने के लिए काफी है. आलू की सब्जी की त्रासदी यह कि वह रोने के अलावा और कुछ नहीं कर सकती. 


वैसे भी हमारी संस्कृति में उसको ज्यादा कुछ करने की इजाजत नहीं है. 


ऐसे में सब्जी यह सोचते हुए चुप रहती है कि; 'अगर मैं सब्जी न बनी होती तो मैं आलू होती. होती तो क्या, कहना चाहिए कि आलू होता. तब देखता कि मिसेज शर्मा मुझे टिफिन में कैसे रखतीं? अगर कोशिश भी करती तो मैं टिफिन के ढक्कन को ऊपर फेंकते हुए किचेन से लुढ़कते हुए सीधा ड्राइंग रूम में जाकर सोफे से टकराकर केवल इसलिए रुकता क्योंकि सोफा मेरे सामने सीमा पर खड़े हुए फौजी जैसा अड़ा रहता. लेकिन ऐसी किस्मत कहाँ कि मैं सब्जी बनूँ ही नहीं और सिर्फ आलू बनकर इधर-उधर ढुलकता फिरूं. एक बार सब्जी बनी और मैं था से थी हुई नहीं कि फिर कोई भी मेरे साथ कुछ भी कर सकता है.' 


सब्जी को पता है कि अब उसको इस कैद से छुड़ाने का काम मिस्टर शर्मा दो बजे ही करेंगे. लिहाजा वह गुलज़ार साहब की ग़ज़ल की लाइन; "दफ्न करदो मुझे कि सांस मिले, नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है"दोहराते हुए दो बजने का इंतजार करती रहती है. 


उधर जब दो बजे शर्मा जी इन रोटियों की रिहाई का महान काम अपने हाथ में लेते हैं तब इन रोटियों को उसी तरह की फीलिंग होती है जैसी कई वर्षों तक जेल में रहने के बाद छोड़ दिए जाने पर नेल्सन मंडेला को हुई होगी. 


रोज लंच के समय टिफिन खोलते हुए शर्मा जी मिसेज शर्मा के स्पेस यूटीलाइजेशन स्किल्स की दाद मन ही मन बड़ी लाउडली देते हैं. मुंबई में रहते हुए मिसेज शर्मा ने दो खानों वाली पतली सी टिफिन में रोटियां, सब्जी, अचार और कभी-कभी दो फांक प्याज ठूंसने में महारत हासिल कर ली है. वह तो शर्मा जी ने सिले हुए पापड़ खाने से मना कर दिया है वरना मिसेज शर्मा तो उसी टिफिन में पापड़ भी रख सकती हैं. अपनी टिफिन खोलकर रोटियां निकालते हुए शर्मा जी के मन में यह बात ज़रूर आती है कि इस तरह की स्किल्स में एक्सेलेंस अचीव करने में श्रीमती जी को कितन समय लगा होगा? क्या इतनी बढ़िया स्टोरिंग वह पहले दिन से ही करने लगी होगी? या फिर रिफाइनमेंट में समय लगा होगा? कई बार तो शर्मा जी मन ही मन यह भी सोचते हैं कि श्रीमती जी अगर किसी लोजिस्टिक्स कंपनी में नौकरी करती तो हर साल उन्हें बेस्ट एम्प्लोयी का अवार्ड मिलता. या फिर मिसेज शर्मा अगर किसी पब्लिक सेक्टर कंपनी की फैक्ट्री में स्टोरकीपर होती तो कंपनी हर साल छब्बीस जनवरी के अवसर पर उनका नाम प्रेसिडेंट गोल्ड मेडल के लिए पक्का भिजवाती.


मिसेज शर्मा ने टिफिन में खाना रखने की यह स्किल मुंबई की लोकल ट्रेन में ठुंसे हुए पैसेंजर्स को देखकर सीखी या फिर मुंबई के लोकल ट्रेन चलानेवालों ने शर्मा जी के खाने की टिफिन देखकर लोकल ट्रेन के डिब्बों में पैसेंजर ठूंसकर ट्रेन चलाने का आईडिया निकाला, यह एक शोध का विषय है. आने वाले दिनों में इस विषय पर कोई छात्र पी एचडी कर सकता है, साहित्यकार कहानी लिख सकता है, कवि कविता ठेल सकता है या फिर आई आई टी में पी एचडी की डिग्री की खोज में पहुँचा कोई इंजिनीयर अपनी अपनी थीसिस लिख सकता है. दुनियाँ भर की लोजिस्टिक्स कम्पनियाँ मिसेज शर्मा से स्पेस यूटिलाइजेशन पर कंसल्टेंसी ले सकती हैं. मिस्टर शर्मा को तो यह विश्वास भी है कि मिसेज शर्मा कंसल्टेंसी दे भी सकती हैं.


रोज दो बजे दोपहर में शर्मा जी टिफिन में कैद रोटियों को आज़ाद करवाते हैं. जब वे आलू की सूखी सब्जी को प्लेट में डालते हैं तब उसे लगता है जैसे किसी ने उसे फाँसी के तख्ते से उतार कर इसलिए नीचे रख दिया क्योंकि पिछले चार घंटे से राष्ट्रपति के दरबार में इंतजार कर रही माफी की उसकी अर्जी को राष्ट्रपति ने मंजूर कर दी. अचार के फांक को आलू की सब्जी की आँखों से निकाल कर जब शर्मा जी प्लेट में रखते हैं, तब आलू की सब्जी के मन में आता है कि वह उन्हें आशीर्वाद या वरदान टाइप कुछ दे डाले लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाती क्योंकि उसे तुरंत याद आता है कि अगले दस मिनट में शर्मा जी उसे चट कर जायेंगे. 


मिस्टर शर्मा, मिसेज शर्मा, रोटियां, सब्जी, अचार और डिब्बे की यह कहानी यूं ही चलती रहती है. सभी को एक-दूसरे से शिकायत हो सकती है लेकिन कोई किसी को छोड़कर जाना नहीं चाहता.

Saturday, June 04, 2011

Else I'll go on fast

Seeing the recent trend that "threat to fast" or "going on fast" really works, my friend VenCut BallSubbu wrote to his CEO .
........................................................
June 1, 2011
Dear Chief Executive Officer
It’s been a long time since I am working with our (y)our organization in spite of that awful office coffee which I have to drink 3-4 times a day. I spend almost 12 hours a day here, daily, work late evenings - all alone. In spite of working so hard, I feel that I haven’t got my due.

For the last 5 years I am working as Senior Manager and haven’t got promoted while many of my colleagues are AVP. My salary also is lesser than many of my batch mates who are working even in smaller companies. The company car I am provided with is Hyundai i10 while my batch mates are flaunting their Honda Citys. If I don’t hear from you (in writing) I’ll Fast unto Death in the Big Video Conference Room.


Regards
VenCut BallSubbu
Senior Manager , Quality Control.

Quick came the reply
....................................................
June 3, 2011
Dear Vencut
Thanks for writing in, after getting your email, I came to know that we have a department called Quality Control - you work there, right?

I really appreciate the fact that you are working with us for 9 years while many of our Top Performers have left us in less than 2 years to work for better companies. I asked for your records from HR but am told that our employee records got destroyed in Mumbai Floods in 2005, any how who needs records of those yesteryears.

I also emailed your Boss Joe to find out about your performance but got an out of office reply “I am busy attending a quality paradigm shift offsite in Mauritius so won’t be able to answer your mail, please contact Vencut in my absence”As I couldn’t find about your performance, either from HR or from your Boss, I searched facebook and twitter to find more about you. Thank God, both these companies are not Mumbai based else they also wouldn’t have any records. 

To my surprise, I found that you bought iPad2 from the grey market after paying a hefty premium and still cribbing about your salary. I also noticed that you are connected with my secy on facebook and “liking” her comments and pics. Last week when you took a “sick” leave from office, you went to Water Kingdom with your friends – What kind of sickness is this which gets cured there.


I checked your Bio on twitter, where you say that “you are a VP with an awesome IT company”.- Gross lie it is. After viewing some of your batch mates’ facebook pages, I came to know that most of your projects during MBA were done by your batchmates while you were busy dating one of your seniors.

Still I would like to give your case a fair hearing and asking Head HR to form a committee to evaluate your records (that reminds me , please submit your marksheets and other credentials, in duplicate, as we don’t have any records ).


Regarding long working hours, I always wondered why our office AC bills were so high – I am asking Head-Facilities to see if some of those can be deducted from your salary. I absolutely agree with you that the office coffee sucks,even I bring my coffee from home, but drinking 3 cups of office coffee a day-daily for 9 years-really shows your character.

Also, as per the company policy, access to the Big Video Conference room is not allowed to officials below AVP grade so please look for some other place to go on fast.


Cheers
Your CEO
PS: please ‘unfriend’ my Secy immediately.